कालिदासो जने जने
कालिदासो जने जने
कालिदासो जने जने
कण्ठे कण्ठे संस्कृतम्
ग्रामे ग्रामे नगरे नगरे
गेहे गेहे संस्कृतम् ॥
मुनिजनवाणी कविजनवाणी
बुधजनवाणी संस्कृतम् ॥
सरला भाषा मधुरा भाषा
दिव्या भाषा संस्कृतम् ॥
मुनिजनवाञ्छा कविजनवाञ्छा
बुधजनवाञ्छा संस्कृतम् ॥
जने जने रामायणचरितम्
प्रियजनभाषा संस्कृतम् ॥
स्थाने स्थाने भारतदेशे
सदने सदने संस्कृतम् ॥
संस्कृत भाषा में धर्म शास्त्र कई हैं, जैसे कि मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, वैष्णव धर्मशास्त्र, शिव धर्मशास्त्र, बौद्ध धर्मशास्त्र आदि। संस्कृत साहित्य में व्याकरण भी एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है। पाणिनि का अष्टाध्यायी संस्कृत व्याकरण का मूल ग्रंथ है। संस्कृत न्याय शास्त्र भी महत्वपूर्ण है, जो कि तर्कशास्त्र के रूप में जाना जाता है। न्याय सूत्रों, न्यायवैशेषिक और मीमांसा शास्त्र भी संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसके अतिरिक्त, आधुनिक संस्कृत साहित्य में अनेक उपन्यास, कहानियां, कविताएं, नाटक, विज्ञान, इतिहास, धर्म, समाज और संस्कृति से संबंधित अन्य विषयों पर भी लेखन उपलब्ध है। अधिकतम शब्द सीमा के लिए, यह बताया जा सकता है कि संस्कृत साहित्य में अनेक विषयों पर लगभग २०,००० से भी अधिक पुस्तकें उपलब्ध होती हैं।