संस्कृत गीतं मनसा सततं स्मरणीयम् |
Sanskrita Geetam Manasa Satatam Smaraniyam
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मनसा सततं स्मरणीयम्
वचसा सततं वदनीयम्
लोकहितं मम करणीयम्
॥ लोकहितं॥
न भोगभवने रमणीयम्
च सुखशयने शयनीयनम्
अहर्निशं जागरणीयम्लो
कहितं मम करणीयम्
॥ मनसा॥
न जातु दु:खं गणनीयम्
न च निजसौख्यं मननीयम्
कार्यक्षेत्रे त्वरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम्
॥ मनसा॥
दु:खसागरे तरणीयम्
कष्टपर्वते चरणीयम्
विपत्तिविपिने भ्रमणीयम्
लोकहितं मम करणीयम्
॥ मनसा॥
गहनारण्ये घनान्धकारे
बन्धुजना ये स्थिता गह्वरे
तत्रा मया संचरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम्
॥ मनसा॥
संस्कृत भाषा में धर्म शास्त्र कई हैं, जैसे कि मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, वैष्णव धर्मशास्त्र, शिव धर्मशास्त्र, बौद्ध धर्मशास्त्र आदि। संस्कृत साहित्य में व्याकरण भी एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है। पाणिनि का अष्टाध्यायी संस्कृत व्याकरण का मूल ग्रंथ है। संस्कृत न्याय शास्त्र भी महत्वपूर्ण है, जो कि तर्कशास्त्र के रूप में जाना जाता है। न्याय सूत्रों, न्यायवैशेषिक और मीमांसा शास्त्र भी संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसके अतिरिक्त, आधुनिक संस्कृत साहित्य में अनेक उपन्यास, कहानियां, कविताएं, नाटक, विज्ञान, इतिहास, धर्म, समाज और संस्कृति से संबंधित अन्य विषयों पर भी लेखन उपलब्ध है। अधिकतम शब्द सीमा के लिए, यह बताया जा सकता है कि संस्कृत साहित्य में अनेक विषयों पर लगभग २०,००० से भी अधिक पुस्तकें उपलब्ध होती हैं।