संस्कृतगीतम् पठत संस्कृतम्, वदत संस्कृतम्
पठत संस्कृतम्, वदत संस्कृतम्
लसतु संस्कृतं चिरं गृहे गृहे च पुनरपि ॥ पठत ॥
ज्ञानवैभवं वेदवाङ्मयं
लसति यत्र भवभयापहारि मुनिभिरार्जितम् ।
कीर्तिरार्जिता यस्य प्रणयनात्
व्यास-भास-कालिदास-बाण-मुख्यकविभि: ॥१॥
स्थानमूर्जितं यस्य मन्वते
वाग्विचिन्तका हि वाक्षु यस्य वीक्ष्य मधुरताम् ।
यद्विना जना नैव जानते
भारतीयसंस्कृतिं सनातनाभिधां वराम् ॥२॥
जयतु संस्कृतम्, संस्कृतिस्तथा
संस्कृतस्य संस्कृतेश्च प्रणयनाच्च मनुकुलम् ।
जयतु संस्कृतम्, जयतु मनुकुलम्
जयतु जयतु संस्कृतम्, जयतु जयतु मनुकुलम् ॥३॥
संस्कृत भाषा में धर्म शास्त्र कई हैं, जैसे कि मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, वैष्णव धर्मशास्त्र, शिव धर्मशास्त्र, बौद्ध धर्मशास्त्र आदि। संस्कृत साहित्य में व्याकरण भी एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है। पाणिनि का अष्टाध्यायी संस्कृत व्याकरण का मूल ग्रंथ है। संस्कृत न्याय शास्त्र भी महत्वपूर्ण है, जो कि तर्कशास्त्र के रूप में जाना जाता है। न्याय सूत्रों, न्यायवैशेषिक और मीमांसा शास्त्र भी संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसके अतिरिक्त, आधुनिक संस्कृत साहित्य में अनेक उपन्यास, कहानियां, कविताएं, नाटक, विज्ञान, इतिहास, धर्म, समाज और संस्कृति से संबंधित अन्य विषयों पर भी लेखन उपलब्ध है। अधिकतम शब्द सीमा के लिए, यह बताया जा सकता है कि संस्कृत साहित्य में अनेक विषयों पर लगभग २०,००० से भी अधिक पुस्तकें उपलब्ध होती हैं।