Shritakamala Mangal Geetam
श्रितकमला कुचमण्डल
मंगलगीतम्
श्रितकमला-कुचमण्डल धृतकुण्डल ए ।
कलित-ललित-वनमाल जय जय देव हरे ।।
दिनमणि-मण्डल-मण्डन भवखण्डन ए ।
मुनिजनमानस-हंस जय जय देव हरे ।।
कालिय-विषधर-गञ्जन जनरञ्जन ए ।
यदुकुल नलिन दिनेश जय जय देव हरे ।।
मधुमुर-नरकविनाशन गरुडासन ए ।
सुरकुल-केलिनिदान जय जय देव हरे ।।
अमल-कमल-दललोचन भवमोचन ए ।
त्रिभुवन-भुवननिधान जय जय देव हरे ।।
जनक-सुताकृतभूषण जितदूषण ए ।
समर-शमित-दशकण्ठ जय जय देव हरे ।।
अभिनव-जलधर सुन्दर धृतमन्दर ए ।
श्रीमुख-चन्द्रचकोर जय जय देव हरे ।।
तव चरणं प्रणता वयम् इति भावय ए ।
कुरु कुशलं प्रणतेषु जय जय देव हरे ।।
श्रीजयदेव-कवेरिदं कुरुते मुदम् ए ।
मङ्गलमुज्ज्वल-गीतं जय जय देव हरे ।।
इति श्रीजयदेव कवि विरचितम् मंगलगीतम्
संस्कृत भाषा में धर्म शास्त्र कई हैं, जैसे कि मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, वैष्णव धर्मशास्त्र, शिव धर्मशास्त्र, बौद्ध धर्मशास्त्र आदि। संस्कृत साहित्य में व्याकरण भी एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है। पाणिनि का अष्टाध्यायी संस्कृत व्याकरण का मूल ग्रंथ है। संस्कृत न्याय शास्त्र भी महत्वपूर्ण है, जो कि तर्कशास्त्र के रूप में जाना जाता है। न्याय सूत्रों, न्यायवैशेषिक और मीमांसा शास्त्र भी संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसके अतिरिक्त, आधुनिक संस्कृत साहित्य में अनेक उपन्यास, कहानियां, कविताएं, नाटक, विज्ञान, इतिहास, धर्म, समाज और संस्कृति से संबंधित अन्य विषयों पर भी लेखन उपलब्ध है। अधिकतम शब्द सीमा के लिए, यह बताया जा सकता है कि संस्कृत साहित्य में अनेक विषयों पर लगभग २०,००० से भी अधिक पुस्तकें उपलब्ध होती हैं।